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Friday, May 29, 2009

क्रान्तिकारी संत मुनि श्री तरुणसागर

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Jain Muni Sri Tarunsagar Maharaj

क्रान्तिकारी संत मुनि श्री तरुणसागर

1. माँ-बाप होने के नाते अपने बच्चों को खूब पढाना-लिखाना और पढा लिखा कर खूब लायक बनाना । मगर इतना लायक भी मत बना देना कि वह कल तुम्हें ही 'नालायक' समझने लगे । अगर तुमने आज यह भूल की तो कल बुढापे में तुम्हें बहुत रोना पछताना पडेगा । यह बात मैं इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि कुछ लोग जिंदगी में यह भूल कर चुके है और वे आज रो रहे है । अब पछताने से क्या होगा जब चिड़िया चुग गई खेत ।

2. बच्चों के झगडे में बडों को और सास बहू के झगडों में बाप बेटे को कभी नहीं पडना चाहिये । संभव है कि दिन में सास बहू में कुछ कहा सुनी हो तो स्वाभाविक है कि वे इसकी शिकायत रात घर लौटे अपने पति से करेगी । पतियों को उनकी शिकायत गौर से सुननी चाहिये, सहानुभूति भी दिखानी चाहिये । मगर जब सोकर उठे तो आगे पाठ-पीछे सपाट की नीति ही अपनानी चाहिये, तभी घर में एकता कायम रह सकती है ।

3. लक्ष्मी पुण्याई से मिलती है । मेहनत से मिलती हो तो मजदूरों के पास क्यों नहीं ? बुद्धि से मिलती हो तो पंडितों के पास क्यों नहीं ? जिंदगी में अच्छी संतान, सम्पत्ति और सफलता पुण्य से मिलती है । अगर आप चाहते है कि आपका इहलोक और परलोक सुखमय रहे तो पूरे दिन में कम से कम दो पुण्य जरूर करिये क्योकिं जिंदगी में सुख, सम्पत्ति और सफलता पुण्याई से मिलती है ।

4. संत को गाय जैसा होना चाहिये, हाथी जैसा नहीं । गाय घास खाती है, पर दूध, दही, छाछ , मक्खन और घी देती है । गाय का गोबर भी काम आता है । हाथी गन्ना, गुड और माल खाता है तो भी समाज को कुछ नहीं देता । संत मुनि को घास अर्थात् हल्का और सात्त्विक भोजन करना चाहिये । संत मुनि वे है जो समाज से अंजुलि भर लेते है और दरिया भर लौटाते है ।

5. संसार में अड़चन और परेशानी न आएं, यह कैसे हो सकता है ? सप्ताह में एक दिन रविवार का भी तो आयेगा ना । प्रकृति का नियम ही ऐसा है कि जिंदगी में जितना सुख-दुःख मिलना है, वह मिलता ही है । क्यों नहीं मिलेगा ? टेण्डर में जो भरोगे वही तो खुलेगा । मीठे के साथ नमकीन जरूरी है । सुख के साथ दुःख का होना भी जरूरी है । दुःख बडे काम की चीज है । जिंदगी में अगर दुःख न हो तो भगवान को कोई भी याद ही न करे ।

6. प्रश्न पूछा है – स्वर्ग मेरी मुट्ठी में हो- इसके लिये मैं क्या करूं ? कुछ मत करो । बस इतना ही करो कि दिमाग को ठंडा रखो, जेब को गरम रखो, आंखों में शरम रखो, जुबान को नरम रखो और दिल में रहम रखो । अगर तुम ऐसा कर सके तो फिर तुम्हें किसी स्वर्ग तक जाने की जरुरत नहीं है, स्वर्ग खुद तुम तक चलकर आयेगा । विडंबना तो यही है कि हम स्वर्ग तो चाहते हैं मगर स्वर्गीय होना नही चाहते ।

7. भले ही लड झगड लेना, पिट जाना, पीट देना मगर बोल चाल बंद मत करना । क्योंकि बोल चाल बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते है । गुस्सा बुरा नहीं है । गुस्से के बाद आदमी जो वैर जो पाल लेता है, वह बुरा है । गुस्सा तो बच्चे भी करते है, मगर बच्चे वैर नहीं पालते । वे इधर लडते झगडते है और उधर अगले ही क्षण फिर एक हो जाते है । कितना अच्छा रहे कि हर कोई बच्चा ही रहे ।

8. दुनियां में रहते हुये दो चीजों को कभी नहीं भूलना चाहिये । एक – परमात्मा, दूसरी – अपनी मौत । दो बातों को हमेशा भूल जाना चाहिये । एक – तुमने किसी का भला किया तो उसे तुरन्त भूल जाओ । दूसरी – किसी ने तुम्हारे साथ कभी कुछ बुरा किया तो उसे तुरन्त भूल जाओ । दुनियां में ये दो बातें ही याद रखने और भूल जाने जैसी है ।

9. तुम अपनी उस बेटी, बहू या बेटे को जो धर्म और अध्यात्म के प्रति उदासीन है, जो संत और सत्संग से दूर भागता है, सिर्फ एक बार मेरी प्रवचन सभा में ले आओ । बस माँ-बाप होने के नाते एक बार लाने का काम तुम्हारा है और रोज बुलाने का काम मुनि तरुणसागर का है । एक बार भी इसलिये कह रहा हूँ कि मुझे तुम्हारे घर का पता नहीं मालूम । यह मेरा आभिमान नहीं , आत्म-विश्वास है, जिसे आप आजमा सकते है |

10. डाक्टर और गुरु के सामने झूंठ मत बोलिये क्योंकिं यह झूंठ बहुत महंगा पड सकता है । गुरु के सामने झूंठ बोलने से पाप का प्रायश्चित नही होगा, डाक्टर के सामने झूंठ बोलने से रोग का निदान नहीं होगा । डाक्टर और गुरु के सामने एकदम सरल और तरल बनकर पेश हो । आप कितने ही होशियार क्यों न हो तो भी डाक्टर और गुरु के सामने अपनी होशियारी मत दिखाइये, क्योंकिं यहां होशियारी बिल्कुल काम नहीं आती ।

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